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अ॒भि॒धाऽअ॑सि॒ भुव॑नमसि य॒न्तासि॑ ध॒र्त्ता। स त्वम॒ग्निं वै॑श्वान॒रꣳ सप्र॑थसं गच्छ॒ स्वाहा॑कृतः ॥३ ॥

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पद पाठ

अ॒भि॒धा इत्य॑भि॒ऽधाः। अ॒सि॒। भुव॑नम्। अ॒सि॒। य॒न्ता। अ॒सि॒। ध॒र्त्ता। सः। त्वम्। अ॒ग्निम्। वै॒श्वा॒न॒र॒म्। सप्र॑थस॒मिति॒ सऽप्र॑थसम्। ग॒च्छ॒। स्वाहा॑कृत॒ इति॒ स्वाहा॑ऽकृतः ॥३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:22» मन्त्र:3


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो तू (भुवनम्) जल के समान शीतल (असि) है (अभिधाः) कहनेवाला (असि) है वा (यन्ता) नियम करने हारा (असि) है (सः) वह (स्वाहाकृतः) सत्यक्रिया से सिद्ध हुआ (धर्त्ता) सब व्यवहारों का धारण करने हारा (त्वम्) तू (सप्रथसम्) विख्याति के साथ वर्त्तमान (वैश्वानरम्) समस्त पदार्थों में नायक (अग्निम्) अग्नि को (गच्छ) जान ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे सब प्राणी और अप्राणियों के जीने का मूल कारण जल और अग्नि हैं, वैसे विद्वान् को सब लोग जानें ॥३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वान् कीदृशो भवतीत्याह ॥

अन्वय:

(अभिधाः) योऽभिदधाति सः (असि) (भुवनम्) उदकम्। भुवनमित्युदकनामसु पठितम् ॥ निघं०१.१२ ॥ (असि) (यन्ता) नियन्ता (असि) (धर्त्ता) सकलव्यवहारधारकः (सः) (त्वम्) (अग्निम्) पावकम् (वैश्वानरम्) विश्वेषु वस्तुषु नायकम् (सप्रथसम्) प्रख्यातत्वेन सह वर्त्तमानम् (गच्छ) (स्वाहाकृतः) सत्क्रियया निष्पन्नः ॥३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यस्त्वं भुवनमिवास्यभिधा असि यन्तासि स स्वाहाकृतो धर्त्ता त्वं सप्रथसं वैश्वानरमग्निं गच्छ जानीहि ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - यथा सर्वेषां प्राण्यप्राणिनां जीवनमूलं जलमग्निश्चास्ति तथा विद्वांसं सर्वे जानीयुः ॥३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व जड व चेतन यांच्या जीवनाचे मूळ कारण जल व अग्नी आहेत हे सर्व विद्वानांनी जाणावे.